Wednesday, August 12, 2009

दास्ताँ

दरवाज़ा खुलता है और पूनम अविनाश से मिलने आती है

पूनम - वाह, कितना फर्क आ गया है कल और आज में ।
अविनाश - आज फ़िर क्या हुआ ?
पूनम - कल ऐसा लग रहा था जैसे यहाँ पे खुशियों की हवाएं चल रही थीं पर आज लग रहा है जैसे कोई दर्द की आंधी चल रही है ।

पर अविनाश था की एक कोरे कैनवास की तरफ़ घूरता ही जा रहा था

पूनम - तुमने सुना भी मैं क्या बोल रही हूँ, सिर्फ़ ये कोरे कैनवास को घूरते जा रहे हो ।

कुछ क्षण के बौखला देने वाली शान्ति के बाद अविनाश ने अपने मधुर कंठ को तकलीफ देने की सोचीपूनम प्रतीक्षा में थी की ऐसा क्या है जो अविनाश देखा रहा था जो वो उसे बताने की भी ज़रूरत नही समझता

अविनाश - इसमें मुझे अपनी जिंदगी नज़र आ रही है, बिल्कुल खाली और वीरान, जिसमें कोई रंग नही, मायने नही, मकसद नही ।
दूर से तो ये एक जुलुस सा नज़र आता है, नज़दीक से देखता हूँ तो मुझे अपनी ही अर्थी नज़र आती है जिससे मैं अपने ही कन्धों पे उठाये जाने कहाँ से कहाँ लिए जा रहा हूँ ।

पूनम - ये तो इंसान पे है अविनाश कि वो अपनी जिंदगी को क्या बनाना चाहता है । मैं तो इतना जानती हूँ कि अपने आप से हमदर्दी करना ख़ुद में एक बीमारी है ।

पास में एक शीशी उठा के पूनम बोल पड़ती है

पूनम - देखो अविनाश आदमी दो तरीके से अपनी जिंदगी को देख सकता है । हम ये भी कह सकते हो कि ये गिलास आधा खली है और ये भी कह सकते हो की ये आधा भरा हुआ है ।

अविनाश - पूनम, जब मैंने तुम्हे पहली बार देखा था तो मुझे ये लगा था कि तुम बहुत खुबसूरत हो, लेकिन आज मुझे पता चला है कि तुम्हारे अन्दर एक और पूनम है जो तुमसे कहीं ज्यादा खुबसूरत है । पूनम एक मिनट के लिए आँखें बंद करो।

पूनम - क्युं अविनाश ?

अविनाश - है कोई बात । मैं तुम्हें एक चीज़ दिखलाना चाहता हूँ ।

पूनम आँखें बंद करती है और इंतज़ार करती है

क्रमशः

3 comments:

Biswajit said...

Baba re funda!!!! Saale tume itna gyan kab se aa gaya!!! waise funde bahut maar rahe ho aaj kal.

Ajay said...

@Dibya kahan se la ke sab likh deta hai re.

@Biswajit arre tereko pura samajh mein bhi aa gaya, i mean its in hindi :P

Unknown said...

dude.. wat happnd.. after that?